भूलाभाई देसाई प्रख्यात विधिवेत्ता, प्रमुख संसदीय नेता तथा महात्मा गांधी के विश्वस्त सहयोगी थे। संसदीय नेतृत्व के उनमें अनुपम गुण थे। कांग्रेस पार्टी के नेता के रूप में नौकरशाही उनसे सदा आतंकित रहती थी। 'आज़ाद हिंद फौज' के सेनापति शहनवाज, ढिल्लन तथा सहगल पर राजद्रोह के मुकदमें में सैनिकों का पक्ष-समर्थन भूलाभाई देसाई ने जिस कुशलता तथा योग्यता से किया था, उससे उनकी कीर्ति देश में ही नहीं, विदेश में भी फैल गई थी।
भूलाभाई देसाई का जन्म सूरत जिले के बलसर में हुआ था। विधिविशेषज्ञता आपको विरासत में मिली। आपके पिता सरकारी वकील थे। प्रत्युत्पन्नमतित्व तथा निर्भीक उक्तियाँ आपकी उल्लेख्य विशेषताएँ थी। बंबई के एलफिंस्टन तथा सरकारी ला कालेज में कानून की उच्च शिक्षा प्राप्त की। बाद में उच्च न्यायालय के अधिवेत्ता बने। विशिष्ट विधिविशारद होने के कारण आपको अल्पकाल में ही धन तथा यश की प्राप्ति हुई। राजनीति के क्षेत्र में सर्वप्रथम माडरेटों के साथ, तदनंतर होम रूल लीग में और अंत में कांग्रेस में आए। महात्मा गांधी की प्रेरणा तथा निर्देश से प्रभावित होकर स्वाधीनता आंदोलन में प्रमुखता से भाग लिया। गुजरात के किसानों को कानूनी सहायता देकर आपने स्वराज्य आंदोलन को नवीन शक्ति प्रदान की। इस दिशा में आपके कार्यो के फलस्वरूप ही ब्रमफील्ड प्रतिवेदन में किसानों की कठिनाइयों को कम करने की संस्तुति की गई।
सन् 1930 के स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको एक वर्ष का कारावास तथ दस हजार रुपए जुर्माने का दंड मिला। इसकेश् बाद के सभी प्रमुख कांग्रेसी आंदोलनों में आप भाग लेते रहे। केंद्रीय धारासभा में कांग्रेस दल के नेता के रूप में आपका कार्य ऐतिहासिक महत्व का है। आपके तीखे तथ्यपूर्ण भाषण सरकारी पक्ष को हतप्रभ कर देते थे। श्री भूलाभाई देसाई में ऐसी अनोखी सूझबूझ थी। जिसके फलस्वरूप आप महत्वपूर्ण बिलों पर मुसलिम पार्टी को साथ लकर सरकारी पक्ष को पराजित कर देते थे। केंद्रीय धारासभा में आपकी संसदीय प्रतिभा तथा असाधारण क्षमता अप्रतिम मानी जाती थी।
जब कांग्रेस कार्य समिति का पुनर्गठन हुआ तब सरदार पटेल के कहने पर उन्हें समिति में शामिल किया गया। सन 1934 में वे गुजरात से केन्द्रीय विधान सभा के लिए चुने गए। विधान सभा में उन्होंने कांग्रेस सदस्यों का नेतृत्व किया। द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को शामिल किये जाने के मुद्दे पर पूरे देश में इसका विरोध हुआ और भूलाभाई देसाई ने भी विधान सभा में इसका विरोध किया। गाँधीजी द्वारा प्रारंभ किये गए सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेने के लिए सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर पुणे के येरवदा जेल भेज दिया। जेल में उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया जिसके स्वरुप उन्हें रिहा कर दिया गया। ख़राब स्वास्थ्य के कारण ही वे ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में भाग नहीं ले पाए।
भारत छोड़ो आन्दोलन के समय कांग्रेस कार्य समिति के सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। सन 1942 और 1945 के मध्य भूलाभाई देसाई जेल न जाने वाले चंद कांग्रेस नेताओं में शामिल थे। अँगरेज़ सरकार पर राजनैतिक बंदियों की रिहाई के लिए दबाव बनाने के साथ-साथ भूलाभाई मुस्लिम लीग के दूसरे सबसे बड़े नेता लियाकत अली खान से समझौते के लिए गुप्त वार्ता कर रहे थे। ऐसा माना जाता है कि दोनों नेताओं ने ये वार्ता गुप्त रखी थी और इसकी खबर दोनों ही पार्टियों के दूसरे नेताओं को नहीं थी।
जब प्रेस में इससे सम्बंधित खबर छपी तब दोनों ओर से प्रतिक्रियाएं आयीं और मुस्लिम लीग ने इस बात को ख़ारिज कर दिया पर कांग्रेस के अन्दर भूलाभाई देसाई की साख गिर गयी। भूलाभाई देसाई ने आजाद हिंद फौज के अधिकारियों शहनवाज खान, गुरबक्श सिंह ढिल्लन तथा प्रेम कुमार सहगल पर लगे राजद्रोह के मुकदमे में उनका पक्षसमर्थन बहुत कुशलता तथा योग्यता के साथ किया
कीर्ति
'आज़ाद हिंद फौज' के सेनापति श्री शहनवाज, ढिल्लन तथा सहगल पर राजद्रोह के मुकदमें में सैनिकों का पक्ष-समर्थन भूलाभाई देसाई ने जिस कुशलता तथा योग्यता से किया, उससे उनकी कीर्ति देश में ही नहीं, विदेश में भी फैल गई। उनमें प्रतिपक्षी पर प्रबल प्रहार कर उसे निरस्त्र कर देने की असाधारण और अद्भुत क्षमता थी। यही कारण है कि उनके पास प्राय: अत्यंत गंभीर क़ानूनी उलझनों के मुकदमे आया करते थे। देश के ख्यातिलब्ध विधिज्ञों में उनका प्रमुख स्थान था।
गुण
संसदीय नेतृत्व के उनमें अनुपम गुण थे। कांग्रेस पार्टी के नेता के रूप में नौकरशाही उनसे सदा आतंकित रहती थी। अंग्रेज़ी भाषा पर उनका असाधारण अधिकार था। भूलाभाई देसाई के भाषणों में तथ्यों, तर्कों तथा व्यंग्य विनोदपूर्ण उक्तियों का प्रभावोत्पादक संयोजन रहता था। इस संबंध में 'देसाई-लियाकत समझौते' का विशेष महत्व है। आपके व्याख्यानों तथा विचारों का संग्रह पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ है। आरंभिक जीवन में भूलाभाई देसाई ने अहमदाबाद स्थित गुजराज कालेज में अर्थशास्त्र तथा इतिहास विषयक प्राध्यामक का भी कार्य किया था
देसाई-लियाकत संधि
जहां तक मोहनदास गांधी और पूरे कांग्रेस कार्यकारणी समिति को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1 942 से 1 9 45 तक गिरफ्तार किया गया था, देसाई कुछ कांग्रेस नेताओं में से एक थे। राजनीतिक कैदियों की तत्काल रिहाई के लिए मांगों पर दबाव डालने के दौरान, देसाई ने मुस्लिम लीग के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण नेता, लीक़त अली खान से गुप्त बातचीत की। हालांकि, इस चिंतन को सर चिमन लाल सेटलवाड जैसे अन्य प्रख्यात लोगों द्वारा गंभीरता से चुनौती दी गई है जिन्होंने कहा है कि गांधी को चल रहे वार्ता के बारे में पूरा ज्ञान है। यह एक भविष्य गठबंधन सरकार के लिए एक समझौते पर बातचीत करने का उनका इरादा था, जो भारत की स्वतंत्र सरकार के लिए हिंदुओं और मुसलमानों के लिए एकजुट विकल्प को सक्षम करेगा। इस सौदे में, लियाकत ने मंत्रियों की परिषद में मुसलमानों से हिंदुओं की समानता के बदले एक अलग मुस्लिम राज्य की मांग को छोड़ दिया। मुस्लिमों के प्रतिनिधि के रूप में लीग को स्वीकार करना और बहुसंख्य हिंदुओं के साथ अल्पसंख्यक समुदाय को समान स्थान प्रदान करना, देसाई ने एक आदर्श भारतीय गठबंधन बनाने का प्रयास किया, जो भारत छोड़ो आंदोलन को समाप्त करते हुए स्वतंत्रता के लिए भारत के रास्ते को तेज करे। जब देसाई गांधी, पटेल, जवाहरलाल नेहरू या किसी अन्य कांग्रेस नेता के ज्ञान के बिना काम कर रहे थे, खान ने अपने वरिष्ठ मुहम्मद अली जिन्ना से इस समझौते को गुप्त रखा था।