गणेश वासुदेव मावलंकर, जन्म: 27 नवम्बर, 1888 - मृत्यु: 27 फ़रवरी, 1956) प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और भारत की लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष थे। इन्हें 'दादा साहेब' के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म 27 नवम्बर, 1888 ई. को बड़ोदरा में हुआ था। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद इन्होंने अहमदाबाद से अपनी वकालत प्रारम्भ की थी। स्वतंत्रता के पश्चात् इन्हें सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया था। इनका कई भाषाओं पर एकाधिकार था। वासुदेव मावलंकर ने अनेक ग्रन्थों की भी रचना की है।
गणेश वासुदेव मावलंकर का जन्म 27 नवम्बर, 1888 को वर्तमान गुजरात राज्य के बड़ौदा नगरमें हुआ था। उनका परिवार तत्कालीन बम्बई राज्य के रत्नागिरी जिले में मावलंग नामक स्थान का मूल निवासी था। मावलंकर तत्कालीन बम्बई राज्य में विभिन्न स्थानों पर अपनी आरम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए 1902 में अहमदाबाद आ गये। उन्होंने 1908 में गुजरात कालेज, अहमदाबाद से विज्ञान विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। कानून की शिक्षा आरंभ करने से पहले वे 1909 में एक वर्ष इस कालेज के "दक्षिण फेलो " रहे। 1912 में उन्होंने कानून की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
मावलंकर ने 1913 में वकालत शुरू की और वे बहुत ही कम समय में एक अग्रणी तथा प्रतिष्ठित वकील बन गए। यद्यपि, उनकी वकालत खूब चलती थी, तथापि, उन्होंने इसके साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी गहन रूचि ली जिसके कारण वे सरदार वल्लभभाई पटेल और महात्मा गांधी जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेताओं के संपर्क में आये। मावलंकर बीस-बाईस वर्ष की उम्र से ही एक पदाधिकारी के रूप में या एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में गुजरात के अनेक प्रमुख सामाजिक संगठनों के साथ जुड़ गए। वे 1913 में गुजरात शिक्षा सोसाइटी के मानद सचिव रहे और 1916 में गुजरात सभा के भी सचिव रहे।
मावलंकर बहुत छोटी उम्र से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जो महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश की स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन चला रही थी, के साथ सक्रिय रूप से जुड़ गये। उन्होंने इस शताब्दी के तीसरे और चौथे दशक में गुजरात में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। वे स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान अनेक बाद जेल गये और लगभग छह वर्ष जेल में रहे। जब भी कभी प्राकृतिक आपदा आती थी या अकाल पड़ता था अथवा कोई अन्य सामाजिक अथवा राजनैतिक संकट उत्पन्न होता था तो मावलंकर अपनी फलती-फूलती वकालत को पूरी तरह छोड़कर लोगों की सहायता के लिए आगे आ जाते थे। उनके नेतृत्व संबंधी गुणों और उनके योगदान को पहचानते हुये उन्हें 1921-22 के दौरान गुजरात प्रादेशिक कांग्रेस समिति का सचिव नियुक्त किया गया। वे दिसम्बर, 1921 में अहमदाबाद में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 36वें अधिवेशन की स्वागत समिति के महासचिव भी थे। उन्होंने "खेरा-नो-रेंट " आन्दोलन में अति सक्रिय भूमिका निभायी और बाद में अनेक अवसरों पर अकाल और बाढ़ राहत कार्यों में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
मावलंकर शक्तियों के विकेन्द्रीकरण और पंचायती संस्था में पूर्ण विश्वास रखते थे तथा उन्होंने अहमदाबाद नगर निगम के लिए लगभग दो दशक तक निष्ठापूर्वक कार्य किया। वे 1919 से लेकर 1937 तक अहमदाबाद नगर निगम के सदस्य रहे। वे 1930-33 और 1935-36 के दौरान दो बार इसके अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल के दौरान अहमदाबाद ने अभूतपूर्व प्रगति की। नगर निगमों तथा स्थानीय निकायों के क्रियाकलापों में उनकी रूपचि जीवनपर्यन्त बनी रही।
शिक्षा एवं व्यावसायिक जीवन
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और भारत की लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर का जन्म बड़ोदरा में हुआ था। उनके पूर्वज महाराष्ट्र में रत्नागिरि के निवासी थे। मावलंकर अपनी उच्च शिक्षा के लिए 1902 ई. में अहमदाबाद आ गये थे। उन्होंने अपनी बी.ए. की परीक्षा 'गुजरात कॉलेज' से उत्तीर्ण की थी और क़ानून की डिग्री 'मुंबई यूनिवर्सिटी' से प्राप्त की। अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत इन्होंने अहमदाबाद में वकालत से प्रारम्भ की और साथ ही सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेने लगे। शीघ्र ही वे सरदार वल्लभ भाई पटेल और गांधीजी के प्रभाव में आ गए। उन्होंने खेड़ा सत्याग्रह में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।
राजनीतिक जीवन
मावलंकर असहयोग आंदोलन के साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए। वह 1 9 21 के दौरान गुजरात प्रांतीय कांग्रेस समिति के सचिव नियुक्त किया गया था 22 हालांकि 1 9 20 के दशक में वह अस्थायी तौर पर स्वराज पार्टी में शामिल हो गए, लेकिन 1 9 30 में वह महात्मा गांधी और नमक सत्याग्रह में लौटे। 1 9 34 में कांग्रेस ने स्वतंत्रता विधायी परिषदों के चुनावों के बहिष्कार को छोड़ने के बाद, मावलंकर बॉम्बे प्रांत विधान सभा और 1 9 37 में इसके अध्यक्ष बने। मावलंकर 1 937 से 1 9 46 तक बॉम्बे विधान सभा के अध्यक्ष बने। 1 9 46 में, वह केन्द्रीय विधान सभा में भी चुने गए।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1 9 47 के दौरान, मध्य विधान सभा और राज्य परिषदों का अस्तित्व समाप्त हो गया और भारत की संविधान सभा के लिए पूर्ण शक्तियां ग्रहण की गईं, जब मावलंकर 14-15 नवंबर, 1 9 47 की आधी रात तक केन्द्रीय विधान सभा के अध्यक्ष रहे। भारत का शासन आजादी के तुरंत बाद, मावलंकर ने 20 अगस्त 1 9 47 को एक समिति का नेतृत्व किया और संविधान सभा की अपनी विधायी भूमिका से संविधान की भूमिका को अलग करने की आवश्यकता पर अध्ययन और रिपोर्ट की। बाद में, इस समिति की सिफारिश के आधार पर, विधानसभा की विधान और संविधान की भूमिकाएं अलग हो गईं और विधायी निकाय के रूप में कार्य करने के दौरान विधानसभा की अध्यक्षता करने का अध्यक्ष बनने का निर्णय लिया गया। मावलंकर को 17 नवंबर 1 9 47 को संविधान सभा (विधान) के अध्यक्ष के पद पर चुना गया था।
ग्रन्थ रचना
मावलंकर ने साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए अहमदाबाद में आगे बढ़कर भाग लिया। वे संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे। ‘कस्तूरबा स्मारक निधि’ और ‘गांधी स्मारक निधि’ के अध्यक्ष के रूप में भी इनकी सेवाएँ स्मरणीय हैं। उन्होंने मराठी, गुजराती और अंग्रेज़ी भाषा में अनेक ग्रन्थ भी लिखे हैं।
निधन
वासुदेव मावलंकर के विचारों पर श्रीमद्भागवदगीता का बड़ा प्रभाव था। भारत की इस महान् विभूति का 27 फ़रवरी, 1956 ई. को निधन हो गया।