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केदारनाथ अग्रवाल जीवनी – Biography of Kedarnath Agarwal in Hindi Jivani

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केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह युग की गंगा आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। कवि केदार की जनवादी लेखनी पूर्णरूपेण भारत की सोंधी मिट्टी की देन है। इसीलिए इनकी कविताओं में भारत की धरती की सुगंध और आस्था का स्वर मिलता है।


१ अप्रैल १९११ को उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद के कमासिन गाँव में जन्मे केदारनाथ का इलाहाबाद से गहरा रिश्ता था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने कविताएँ लिखने की शुरुआत की। उनकी लेखनी में प्रयाग की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा है। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुई।


प्रकाशक शिवकुमार सहाय उन्हें पितातुल्य मानते थे और 'बाबूजी' कहते थे। लेखक और प्रकाशक में ऐसा गहरा संबंध ज़ल्दी देखने को नहीं मिलता। यही कारण रहा कि केदारनाथ ने दिल्ली के प्रकाशकों का प्रलोभन ठुकरा कर परिमल से ही अपनी कृतियाँ प्रकाशित करवाईं। उनका पहला कविता संग्रह फूल नहीं रंग बोलते हैं परिमल से ही प्रकाशित हुआ था। जब तक शिवकुमार जीवित थे, वह प्रत्येक जयंती को उनके निवास स्थान पर गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन करते थे।


केदार जी की लेखनी से जिस समय काव्य सर्जना होने लगी थी तब आजादी-आंदोलन ज़ोरों पर था । यह वही दौर था जिस समय सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों ने एक नए मध्य वर्ग को जन्म दिया था । देश की आर्थिक दशा संतोषजनक नहीं थी । अंग्रेज शासकों की दोहन की नीति की वजह से कई विडंबनात्मक परिस्थितियाँ मौजूद थीं । जिस समय केदर जी अपनी लेखनी चलाने लगे थे, लगभग उन्हीं दिनों में प्रगतिशील चेतना का उदय हुआ था प्रगतिवादी आंदोलन की वजह से । 1936 में लखनऊ में प्रेमचंद की अध्यक्षता में प्रगतिशील लेखक संघ का अधिवेशन भी सुसंपन्न हुआ था ।


केदार जी की काव्य-यात्रा का आरंभ लगभग 1930 से माना जा सकता है । आरंभिक 5-6 वर्षों में उन्होंने जो भी कविताएँ लिखी हैं, उन्हें देखने का अवसर मुझे नहीं मिला है, मगर इस संबंध में विद्वानों की राय यही है कि उस समय की उनकी कविताएँ प्रेम और सौंदर्य पर केंद्रित थीं । अशोक त्रिपाठी जी ने उन्हें “केवल भाववादी रूझान की कविताएँ”2 माना है ।


केदारनाथ अग्रवाल जी को प्रगतिशील कवियों की श्रेणी में बड़ी ख्याति मिली है । कविता के अलावा गद्यलेखन में भी उन्होंने रुचि दर्शायी थी, मगर काव्य-सर्जक के रूप में ही वे सुख्यात हैं । इनकी प्रकाशित ढ़ाई दर्जन कृतियों में 23 कविता संग्रह, एक अनूदित कविताओं का संकलन, तीन निबंध संग्रह, एक उपन्यास, एक यात्रावृत्तांत, एक साक्षात्कार संकलन और एक पत्र-संकलन भी शामिल हैं।


प्रमुख कृतियाँ


युग की गंगा, नींद के बादल, लोक और अलोक, आग का आइना, पंख और पतवार, अपूर्वा, बोले बोल अनमोल, आत्म गंध आदि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। उनकी कई कृतियाँ अंग्रेजी, रूसी और जर्मन भाषा में अनुवाद भी हो चुकी हैं। केदार शोधपीठ की ओर हर साल एक साहित्यकार को लेखनी के लिए 'केदार सम्मान' से सम्मानित किया जाता है।


बाल साहित्‍यकार


हिंदी बालसाहित्‍य पर पहला शोधप्रबंध, प्रथम पांक्‍तेय संपादक, प्रथम पांक्‍तेय आलोचक तथा प्रथम पांक्‍तेय रचनाकार थे हरिकृष्ण देवसरे। उन्हें बालसाहित्‍यकार कहलवाने में जरा-भी हिचकिचाहट नहीं थी। जब और जहां भी अवसर मिले बालसाहित्‍य में नई परंपरा की खोज के लिए सतत आग्रहशील रहे। पचास से अधिक वर्षों से अबाध मौलिक लेखन, कई दर्जन पुस्‍तकें, उत्‍कृष्‍ट पत्रकारिता, संपादन, समालोचना और अनुवादकर्म उनके लेखन कौशल को दर्शाता है। कुल मिलाकर बालसाहित्‍य के नाम पर अपने आप में एक संस्‍था, एक शैली, एक आंदोलन थे हरिकृष्ण देवसरे। उस जमाने में जब बालसाहित्‍य अपनी कोई पहचान तक नहीं बना पाया था, लोग उसे दोयम दर्जे का साहित्‍य मानते थे, अधिकांश साहित्‍यकार स्‍वयं को बालसाहित्‍यकार कहलवाने से भी परहेज करते; और जब बच्‍चों के लिए लिखना हो तो अपना ज्ञान, उपदेश और अनुभव-समृद्धि का बखान करने लगते थे, उन दिनों एक बालपत्रिका की संपादकी के लिए जमी-जमाई सरकारी नौकरी न्‍योछावर कर देना, फिर बच्‍चों की खातिर हमेशा-हमेशा के लिए कलम थाम लेना, परंपरा का न अतार्किक विरोध, न अंधसमर्पण। डॉ. देवसरे ने बालसाहित्‍य की लगभग हर विधा में लिखा। हर क्षेत्र में अपनी मौलिक विचारधारा की छाप छोड़ी। लुभावनी परिकल्‍पनाएं गढ़ीं, मगर उनकी छवि बनी एक वैज्ञानिक सोच, बालसाहित्‍य के नाम पर परीकथाओं और जादू-टोने से भरी रचनाओं के विरोधी बालसाहित्‍यकार की। ऐसा भी नहीं है कि वे बालसाहित्‍य की पुरातन परंपरा को पूरी तरह नकारते हों, परीकथाओं की मोहक कल्‍पनाशीलता से उन्‍हें जरा-भी मोह न हो, उनकी सहजता और पठनीयता उन्‍हें लुभाती न हो, वस्‍तुतः वे परंपरा के नाम पर भूत-प्रेत, जादू-टोने, तिलिस्‍म जैसी अतार्किक स्‍थापनाओं, इनके आधार पर गढ़ी गई रचनाओं का विरोध करते हैं। वे उस फंतासी को बालसाहित्‍य से बहिष्‍कृत कर देना चाहते हैं, जिसका कोई तार्किक आधार न हो।


मुख्य कृतियाँ


डाकू का बेटा, आल्‍हा-ऊदल, शोहराब-रुस्‍तम, महात्‍मा गांधी, भगत सिंह, मील के पहले पत्‍थर, प्रथम दीपस्‍तंभ, दूसरे ग्रहों के गुप्‍तचर, मंगलग्रह में राजू, उड़ती तश्‍तरियाँ, आओ चंदा के देश चलें, स्‍वान यात्रा, लावेनी, घना जंगल डॉट काम, खेल बच्‍चे का, आओ चंदा के देश चलें, गिरना स्‍काइलैब का


संपादन : पराग, बाल साहित्य रचना और समीक्षा


प्रकाशित काम


केदारनाथ अग्रवाल की प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं:


    यूग की गंगा


    नींद के बादल


    लोक और आलोक


    फूल नहं रंग बोल्ते हैं


    आगा का ऐनेना


    बांबे का राक्षसन


    Gulmehndi


    पंख और पटवार


    मार प्यार की थापिन


    वह मेरी टम


    काहिनाथ केदार खारी खारी


    अपूर्व


    वाह चिदिया जो


    जमुन जल तुम्सा


    बोले बोल अबल


    जो शिलायिन टॉड हैन


    आत्मा गांधी


    अंहरी हरियाली


    खुली आँखें खुली दायिन


सम्मान


बाल साहित्य भारती (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ), आचार्य कृष्ण विनायक फड़के बाल साहित्य समीक्षा सम्मान, बाल साहित्य पुरस्कार (साहित्य अकादेमी द्वारा), कीर्ति सम्मान, वात्सल्य पुरस्कार

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