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नारायण दत्त तिवारी जीवनी - Biography of N. D. Tiwari in Hindi Jivani

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नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के भूतपूर्व मुख्यमन्त्री थे। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता हैं। एन. डी. तिवारी उत्तर प्रदेश के चार बार मुख्यमंत्री रहे और उत्तरांचल प्रदेश बनने के बाद वहाँ के तीसरे मुख्यमंत्री बने।


नारायण दत्त तिवारी का जन्म 18 अक्तूबर, 1925 ई. को ग्राम बल्यूरी, पदमपुरी ज़िला नैनीताल में हुआ था। उनके पिता पूरन चंद तिवारी भी स्वतंत्रता सेनानी थे। देशभक्ति की भावना से प्रेरित तिवारी जी विद्यार्थी जीवन में ही आंदोलन में सम्मिलित हो गये। और 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में गिरफ्तार कर लिए गये। जेल से छूटने पर उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की। तभी उन्हें देश के प्रमुख नेताओं जवाहरलाल नेहरू, महामना मदनमोहन मालवीय, आचार्य नरेंद्र देव आदि के आने का अवसर मिला और वे समाजवादी बन गए। उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन कुमाऊं के श्रमिक संघों के संगठन में लगकर आरम्भ किया।


तिवारी जी की शिक्षा हल्द्वानी, नैनीताल और बरेली में हुई. बाद में अपनी पढाई पूरी करने के बाद वे पिता पूर्णानंद की तरह आजादी के आन्दोलन में कूद गए. सन 1942 के आन्दोलन के ब्रिटिश सरकार के खिलाफ तीव्र आन्दोलन करने के कारण नैनीताल जेल में डाल दिए गए. इस जेल में पिता और पुत्र एक साथ रहे, लगभग 15 महीने की सजा के बाद तिवारी जी सन 1944 को जेल से बाहर आये.


सन 1947 में वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गये. यह तिवारी जी के लिये राजनीतिक जीवन में आगे जाने की एक बड़ा कदम था. सन 1952 में तिवारी जी नैनीताल सीट से चुनाव लड़े और जीत गए तथा उत्तर प्रदेश के पहली विधानसभा के सदस्य के रूप में विधानसभा पहुचें. सन 1965 में तिवारी काशीपुर विधानसभा से चुनाव लड़े और जीत गए और पहली बार उत्तर प्रदेश के मंत्रीमंडल में जगह मिली तथा उनको कांग्रेस का साथ मिलता गया.


सन 1969 से 1971 तक तिवारी जी कांग्रेस के युवा संघटन के अध्यक्ष चुने गए. तिवारी जी को बड़ा सम्मान तब मिला जब वे सन 1976 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और यह सरकार 1977 को गिर गई. तिवारी जी 3 बार उत्तर प्रदेश के 1 बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने है. ऐसा करने वाले वे पहले व्यक्ति है जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री बने हो.


भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनकी दीक्षा प्रारंभिक थी, जब उन्हें 14 दिसंबर, 1 9 42 को साम्राज्यवादी नीतियों का विरोध करने वाले विरोधी ब्रिटिश पत्रक लिखने के लिए गिरफ्तार किया गया और नैनीताल जेल भेज दिया गया, जहां उनके पिता पहले ही खारिज थे। उत्त्तर प्रदेश जिला गजटेटर्स, पी । 64. उत्तर प्रदेश सरकार। 1944 में 15 महीनों के बाद उनकी रिहाई के बाद, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश किया, जहां उन्होंने एमए (राजनीति विज्ञान) में विश्वविद्यालय में शीर्ष स्थान हासिल किया, उन्होंने एक ही विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई जारी रखी और छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए। 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय। इस बीच वह सचिव बने, अखिल भारतीय छात्र कांग्रेस, 1 945-49। भारत के राष्ट्रपति वेबसाइट वेबसाइट।


1954 में, उन्होंने सुशीला सांवाल से शादी की, जिनके पास कोई संतान नहीं था। उद्धरण: "लेकिन ग़ायबन्धन और उनसे मुफ़्त पहुंच वाले लोगों का आरोप उसे कुत्ता बना रहे हैं। उनके करीब के सूत्रों का कहना है कि उनके कुछ सहयोगियों ने घरेलू सुरक्षा में वैक्यूम का फायदा उठाया- उनकी पत्नी सुशीला, लखनऊ में एक डॉक्टर का 10 साल का निधन हो गया पहले और उसके पास कोई बच्चा नहीं है। "


कैरियर के शुरूआत


1952 में उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए स्वतंत्रता के बाद उत्तर प्रदेश के पहले चुनाव में, वह नैनital निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए और प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर पहली बार विधायक बन गए। 1957 में, वह नैनीताल विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए और विधानसभा में विपक्ष के नेता बने।


1963 में, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए, और 1965 में काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से विधान सभा (विधायक) के सदस्य चुने गए और बाद में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री नियुक्त किया गया। इसके बाद वह चौधरी चरण सिंह सरकार (1 9 7 9 -80 9) में वित्त और संसदीय मामलों के मंत्री रहे। 1968 में, उन्होंने एक स्वैच्छिक संगठन जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केंद्र (जेएनएनवाईसी) की स्थापना की। वह 1969 से 1971 तक भारतीय युवा कांग्रेस के पहले राष्ट्रपति रहे।


राजनीतिक जीवन


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी को आज उस समय बड़ा झटका लगा, जब दिल्ली हाईकोर्ट में उनके रक्त के नमूने संबंधी डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक किया गया और उस रिपोर्ट के अनुसार पितृत्च वाद दायर करने वाले रोहित शेखर तिवारी ही एनडी तिवारी के बेटे हैं।


दिल्ली में रहने वाले 32 साल के रोहित शेखर तिवारी का दावा है कि एनडी तिवारी ही उसके जैविक पिता हैं और इसी दावे को सच साबित करने के लिए रोहित और उसकी मां उज्ज्वला तिवारी ने 4 साल पहले यानी 2008 में अदालत में एन डी तिवारी के खिलाफ पितृत्व का केस दाखिल किया था।


अदालत ने मामले की सुनवाई की और अदालत के ही आदेश पर पिछले 29 मई को डीएनए जांच के लिए एनडी तिवारी को अपना खून देना पड़ा था।


देहरादून स्थित आवास में अदालत की निगरानी में एनडी तिवारी का ब्लड सैंपल लिया गया था। कुछ दिनों पहले हैदराबाद के सेंटर फोर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायएग्नोस्टिक्स यानी सीडीएफडी ने ब्ल़ड सैंपल की जांच रिपोर्ट अदालत को सौंप दी।


सीडीएफडी की इस सील्ड रिपोर्ट में एनडी तिवारी के साथ रोहित शेखर तिवारी और रोहित शेखर तिवारी की मां उज्ज्वला तिवारी की भी डीएनए टेस्ट रिपोर्ट शामिल हैं। हालांकि एनडी तिवारी नहीं चाहते कि उनकी डीएनए टेस्ट रिपोर्ट सार्वजनिक हो इसलिए उन्होंने अदालत में इसे गोपनीय रखने के लिए याचिका भी दी थी लेकिन अदालत इसे खारिज कर दिया और इसे खोलने का आदेश जारी कर दिया।

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