सर फेरोझेश मेहता (जन्म 4 अगस्त 1845, बॉम्बे (अब मुंबई), भारत-निधन 5 नवंबर, 1 9 15, बॉम्बे), भारतीय राजनीतिक नेता, बॉम्बे (अब मुंबई) के लिए नगरपालिका चार्टर के नियोजक और अंग्रेजी के संस्थापक -भाषा अखबार बोम्बे क्रॉनिकल (1 9 13) एक मध्यमवर्गीय पारसी विदेशी व्यापारी के बेटे, मेहता ने चार साल के लिए इंग्लैंड में कानून का अध्ययन किया, जिसे 1868 में बार में बुलाया गया, और फिर घर लौट आया। बॉम्बे कमिश्नर आर्थर क्रॉफर्ड की कानूनी रक्षा के दौरान उन्होंने नगर निगम के सुधारों की आवश्यकता पर ध्यान दिया और बाद में 1872 के नगरपालिका अधिनियम की स्थापना की, जिसके लिए उन्हें "बॉम्बे में नगरपालिका सरकार का पिता" कहा गया।
सर फिरोजशाह मेहरवांजी मेहता का जन्म बंबई के एक धनी पारसी कुल में हुआ था जिनके व्यापार की शाखाएँ देश-विदेश में फैली हुई थीं। ये बी0 ए0 तथा एम0 ए0 की परीक्षाओं में प्रतिष्ठापूर्वक उतीर्ण हुए। इनकी असाधारण बुद्धिमत्ता देखकर इन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये इंग्लैंड भेजा गया। वहाँ पर न्यायवेत्ताओं की सर्वोच्च परीक्षा में उत्तीर्ण होकर ये स्वदेश लौट आए। इंग्लैंड में ये लंडन भारतीय सभा तथा "ईस्ट इंडिया ऐसोसिएशन" के संपर्क में आए। यहीं से इनके राजनीतिक, सामाजिक एवं साहित्यिक जीवन का शुभारंभ हुआ।
न्यायवेत्ता के कार्य में इन्होंने अपूर्व ख्याति उपलब्ध की परंतु इन्होंने अपने स्वार्थसाधन के लिये न्याय की मर्यादा का अतिक्रमण नहीं किया। तीन बार ये बंबई कारपोरेशन के सभापति चुने गए। उस समय कारपोरेशन की दशा शोचनीय थी। उसकी उन्नति के लिये मेहता जी ने हार्दिक प्रयत्न किया। इसलिये ये बंबई कारपोरेशन के बिना छत्रधारी राजा कहलाने लगे। बंबई सरकार ने कारपोरेशन के संगठन के लिये एक बिल प्रस्तुत किया जो अहितकर था। अत: बंबई की जनता ने उसका विरोध किया। इसे परिवर्तित करने के लिये बंबई के गवर्नर ने इस मसविदे को तेलंग और मेहता के पास भेज दिया। इस युगल मूर्ति ने सरकार तथा प्रजा दोनों के हित का ध्यान रखते हुए इस बिल को बड़ी सुदंरता से परिवर्तित किया।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनका योगदान व बिचार:
अन्य उदारवादी नेताओं की तरह फिरोजशाह मेहता भी ब्रिटिश शासन को दैवीय विधान मानते थे । ब्रिटिश शासन में अटूट आस्था रखते थे । ब्रिटिश शासन की न्यायप्रियता और बुद्धिमत्ता पर कई बार उन्होंने अपनी आस्था भी जतायी । वे मानते थे कि ब्रिटिश के हाथों भारत का भविष्य सुरक्षित है । शिक्षा में भी वे अंग्रेजी पद्धति की शिक्षा में विश्वास रखते थे ।
21 जनवरी 1883 को उन्होंने बम्बई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन की स्थापना की तथा इसके माध्यम से सभाओं, प्रस्तावों द्वारा राजनैतिक चेतना उत्पन्न की । 1890 में कलकत्ता अधिवेशन में वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये । 1892 में केन्द्रीय परिषद के सदस्य चुने गये । उनका विचार था कि ”ब्रिटिश शासन का विरोध करने पर कांग्रेस के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो सकता है ।” अत: वे अपनी उदारवादी सोच के साथ हिंसात्मक जुलूस आदि को अवैध ठहराकर स्वतन्त्रता पाना चाहते थे ।
राष्ट्रहित में उग्रवाद को वे खतरनाक मानते थे । आर्म्स एक्ट, प्रेस एक्ट का कड़ा विरोध करते हुए उन्होंने किसानों का सदा ही पक्ष लिया । नगरपालिकाओं में स्वायत्त स्वशासन की उन्होंने वकालत की । भारतीयों को सामाजिक व राजनीतिक विचारों का ज्ञान कराने के लिए शिक्षा के प्रसार पर उन्होंने सदा ही जोर दिया । उनका यह विश्वास था कि कोई भी शासन जनता के हितों की अवहेलना करके बहुत दिनों तक साम्राज्य नहीं चला सकता ।
वे पशु वध व पशु बलि के कट्टर विरोधी थे । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से वे सहमत थे । बम्बई से उन्होंने बाम्बे क्रॉनिकल का प्रकाशन प्रारम्भ किया, जिसके माध्यम से भारतीयों को अपने अधिकारों के लिए शान्ति और अहिंसात्मक तरीके से संधर्ष करने की प्रेरणा दी ।
कार्यक्षेत्र
फिरोज़शाह मेहता बैरिस्टरी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड गए। वहाँ उनका दादाभाई नौरोजी से भी सम्पर्क हुआ। वे वहाँ भारत के पक्ष में आवाज़ उठाने वाली संस्थाओं से भी जुड़े रहे। भारत आकर उन्होंने वकालत आरम्भ की और शीघ्र ही उनकी गणना सफल बैरिस्टरों में होने लगी। उन्होंने 'मुम्बई म्युनिसिपल बोर्ड' के कार्यों में गहरी रुचि ली। उनका नगर में इतना प्रभाव था कि उन्हें ‘मुम्बई का मुकुटहीन राजा’ कहा जाता था। फिरोज़शाह मेहता 1886 में 'मुम्बई लेजिस्लेटिव कॉंसिल' के लिए मनोनीत किए गए। बाद में केन्द्र की 'इंपीरियल कॉंसिल' के भी सदस्य रहे।
अंग्रेज़ों के प्रशंसक
कांग्रेस से उनका सम्बन्ध उसकी स्थापना के समय ही हो गया था। उस समय के अनेक नेताओं की भाँति फिरोज़शाह मेहता भी नरम विचारों के राजनीतिज्ञ थे। वे अंग्रेज़ों के प्रशंसक थे। 1890 ई. में उन्होंने कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन की अध्यक्षता की। इस अवसर पर उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि, "यदि आप अंग्रेज़ों के सामाजिक, नैतिक, मानसिक और राजनीतिक गुणों को अपनायेंगे तो भारत और ब्रिटेन के बीच सदा अच्छा सम्बन्ध रहेगा।" 1904 की मुम्बई कांग्रेस के स्वागताध्यक्ष के रूप में भाषण करते हुए उन्होंने कहा कि, "मैंने दुनिया को नहीं बनाया, जिसने इसे बनाया है, वह स्वयं इसे सम्भालेगा। इसीलिए मैं तो अंग्रेज़ी राज को ईश्वर की देन मानता हूँ।"
शिक्षा के पक्षधर
फिरोज़शाह मेहता शिक्षा पर बहुत ज़ोर देते थे। नौकरशाही को जनता की माँ-बाप समझने की प्रवृत्ति का उन्होंने सदा विरोध किया। वे अपने समय के उन थोड़े से नेताओं में से थे, जिनका जनता और अंग्रेज़ सरकार दोनों सम्मान करते थे। समय-समय पर वे सरकार से भिड़ भी जाते थे। अपने जीवन के अन्तिम दिनों में फिरोज़शाह मेहता ने अंग्रेज़ी दैनिक पत्र ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ का प्रकाशन आरम्भ किया।
एक नजर ... … .. … .. … .. . . . . . . . . . . .
1868 में बंम्बई उच्च न्यायलय में वो वकिली करने लगे.
1872 में वो बंम्बई महापालिके के सदस्य बने. तीनबार वो अध्यक्ष भी बने. उनका 38 साल बंम्बई महापालिकेपर वर्चस्व था.
1885 में ‘बॉम्बे प्रेसिडेंसी असोसिएशन’ की स्थापना उन्होंने कि. वो उसके सचिव हुवे.
1886 में ‘बंम्बई लेजिस्लेटिव्ह कॉन्सिल’ के वो सदस्य बने.
1889 में बंम्बई विद्यापिठ्के सिनेटके सदस्य बने वैसेही बंम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेसके स्वागत समितीके अध्यक्ष हुये.
1890 (कलकत्ता) और 1909 (लाहोर) यहाके भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के अधिवेशन के उन्होंने अध्यक्षस्थान पर थे.
1892 में पांचवे बंम्बई प्रांतीक समेंलनके अध्यक्षस्थान पर थे.
1911 में ‘सेंट्रल बॅक ऑफ इंडिया’ के स्थापना में उनको महत्वपूर्ण योगदान था.
1913 में ‘द बॉम्बे क्रॉनिकल’ नामके अखबार का प्रकाशन उन्होंने किया.
फिरोजशाह मेहता संवैधानिक तरीकों से आजादी पाने की दिशा में सतत प्रयत्न करते रहे, इनके योगदान को आज भी याद किया जाता है, 5 नवंबर, 1915 के दिन उनका देहावसान हो गये.