ज्योति बसु ८ जुलाई १९१४ को कलकत्ता के एक उच्च मध्यम वर्ग बंगाली परिवार में ज्योति किरण बसु के रूप में पैदा हुए। उनके पिता निशिकांत बसु, ढाका जिला, पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश में) के बार्दी गांव में एक डॉक्टर थे, जबकि उनकी मां हेमलता बसु एक गृहिणी थी। बसु की स्कूली शिक्षा १९२० में धरमतला, कलकत्ता (अब कोलकाता) के लोरेटो स्कूल में शुरू हुई, जहां उनके पिता ने उनका नाम छोटा कर ज्योति बसु कर दिया।
१९२५ में सेंट जेवियर स्कूल में जाने से पहले बसु ने स्नातक शिक्षा हिंदू कॉलेज (१८५५ में प्रेसीडेंसी कॉलेज के रूप में तब्दील) में विशिष्ठ अंग्रेजी में पूरी की। १९३५ में बसु कानून के उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए, जहां ग्रेट ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी के संपर्क में आने के बाद राजनैतिक क्षेत्र में उन्होंने कदम रखा। यहां नामचीन वामपंथी दार्शनिक और लेखक रजनी पाम दत्त से प्रेरित हुए।
१९४० में बसु ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और बैरिस्टर के रूप में मिडिल टेंपल से प्रात्रता हासिल की। इसी साल वे भारत लौट आए। जब सीपीआई ने १९४४ में इन्हें रेलवे कर्मचारियों के बीच काम करने के लिए कहा तो बसु ट्रेड यूनियन की गतिविधियों में संलग्न हुए। बी.एन. रेलवे कर्मचारी संघ और बी.डी रेल रोड कर्मचारी संघ के विलय होने के बाद बसु संघ के महासचिव बने।
बसु अपने कार्यकाल के दौरान होने वाले तमाम आंदोलनों से अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ से निपटते रहे. ऐसे आंदोलनों में अस्सी के दशक में दार्जिलिंग की पहाड़ियों में हुए गोरखालैंड आंदोलन और नब्बे की दशक की शुरूआत में कूचबिहार जिले में हुए तीनबीघा आंदोलन का जिक्र किया जा सकता है.
वर्ष 1985 में सुभाष घीसिंग और उनके समर्थकों ने गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के बैनर तले अलग राज्य की मांग में जोरदार आंदोलन शुरू किया था. लगभग तीन साल तक चले इस आंदोलन के दौरान सैकड़ों लोग मारे गए और करोड़ों की सरकारी संपत्ति नष्ट हो गई. आखिर 14-15 अगस्त, 1988 को केंद्र, राज्य और जीएनएलएफ के बीच तितरफा करार के जरिए पर्वतीय परिषद के गठन पर सहमित बनी. उसके बाद भी घीसिंग जब-जब बेकाबू होते रहे, बसु ने अपने कौशल से उनको शांत किया.
राजनीतिक दक्षता :
उनके पास बंगाल में वाम दलों को एक साथ रखने का काफ़ी लंबा अनुभव था ( यह गठबंधन आज 33 साल बाद भी वहां सत्ता में बना हुआ है लेकिन अब यह कमज़ोर होने के संकेत दे रहा है) ऐसे में केंद्र की राजनीति में एक अस्थीर गठबंधन को स्थिर बनाए रखना काफ़ी चुनौतीपूर्ण काम था. लेकिन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने इसे दूसरी तरह से लिया.
माकपा ने इस गठबंधन सरकार में शामिल न होने और उसे बाहर से समर्थन देने का फ़ैसला लिया. इससे ज्योति बसु प्रधानमंत्री नहीं बन पाए. बाद में उन्होंने पार्टी के इस फ़ैसले को 'ऐतिहासिक भूल' करार दिया. ज्योति बसु का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश में) के एक समृद्ध मध्यवर्गीय परिवार में आठ जुलाई 1914 को हुआ था. उन्होंने कलकत्ता के एक कैथोलिक स्कूल और सेंट जेविर्यस कॉलेज़ से पढ़ाई की.
वकालत की पढ़ाई बसु ने लंदन में की. रजनी पाम दत्त जैसे कम्युनिस्ट नेताओं से संबंधों के चलते उन्होंने 1930 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया की सदस्यता ले ली. रेल कर्मचारियों के आंदोलन में शामिल होने के बाद पहली बार में वे चर्चा में आए और 1957 में पश्चिम बंगाल विधानसभा में वे विपक्ष के नेता चुने गए. 1967 में बनी वाम मोर्चे के प्रभुत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार में ज्योति बसु को गृहमंत्री बनाया गया लेकिन नक्सलवादी आंदोलन के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और वह सरकार गिर गई.
ऐतिहासिक मुख्यमंत्री :
ज्योति बसु ने लगातार 23 साल तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया। ज्योति बसु की सरकार ने राज्य में कई उपलब्धियाँ दर्ज कीं जिनमें प्रमुख है नक्सलवादी आंदोलन से बंगाल में पैदा हुई अस्थिरता को राजनीतिक स्थिरता में बदलना। उनकी सरकार का एक और उल्लेखनीय काम है भूमि सुधार, जो दूसरे राज्यों के किसानों के लिए आज भी एक सपना है। ज्योति बसु की सरकार ने जमींदारों और सरकारी कब्ज़े वाली ज़मीनों का मालिक़ाना हक़ क़रीब 10 लाख भूमिहीन किसानों को दे दिया।
इस सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों की ग़रीबी दूर करने में भी काफ़ी हद तक सफलता पाई। सफलता के झंडे गाड़ने वाली बसु सरकार की कुछ कमियाँ भी रहीं। जैसे कि वह बार-बार हड़ताल करने वाली ट्रेड यूनियनों पर कोई लगाम नहीं लगा पाई, उद्योगों में जान नहीं फूंक पाई और विदेशी निवेश नहीं आकर्षित कर पाई। वहीं ज्योति बसु की यह सरकार कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की सरकारों की तरह तकनीकी रूप से दक्ष लोगों का उपयोग कर राज्य में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग भी नहीं खड़ा कर पाई
ज्योति बाबू प्रधानमंत्री नहीं बने :
देश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाने वाले ज्योति बसु 1996 में प्रधानमंत्री बनने के भी एकदम करीब आ गए थे, लेकिन तब उनकी पार्टी माकपा ने ऐसा करने के खिलाफ फैसला किया, जिसे इस वरिष्ठ नेता ने ऐतिहासिक महाभूल बताते हुए कहा था कि इतिहास ऐसे अवसर दोहराता नहीं और उनकी बात सच साबित हुई।
देश में 1996 में हुए लोकसभा चुनाव के खंडित जनादेश में कांग्रेस सत्ता में नहीं लौट सकी और भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। उन हालात में तमिलनाडु हाउस में प्रधानमंत्री का उम्मीदवार चुनने के लिए गैर-कांग्रेसी वरिष्ठ नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक हुई। विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम सामने आया, लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा कर संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में ज्योति बसु का नाम सुझाया।
इस प्रस्ताव को गंभीरता से लेते हुए माकपा के तत्कालीन महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत पार्टी के पास गए। माकपा पोलित ब्यूरो में इस पर चर्चा हुई और गहरे मतभेद उभरने पर मामला केन्द्रीय समिति के सुपुर्द कर दिया गया। कट्टरपंथी वाम नेताओं की बहुमत वाली केन्द्रीय समिति ने ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश को यह कह कर नामंजूर कर दिया कि पार्टी अभी इस हालत में नहीं है कि संयुक्त मोर्चा सरकार में वह अपनी नीतियों को लागू करवा पाए।
निधन :
देश में सबसे लंबे समय तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले ज्योति बसु ने 17 जनवरी, 2010 को कोलकाता के एक अस्पताल में अंतिम सांस लीं।