इल्तुतमिश का अर्थ है साम्राज्य का रक्षक। इल्तुतमिश तुर्किस्तान की इल्बरी काबिले का था। प्रारंभ से ही उसमें बुद्धिमत्ता एवं चतुराई के लक्षण दिखलाई देते थे। इससे उसके भाइयों को बड़ी ईष्य हो गयी तथा उन्होंने उसे पैतृक घर एवं संरक्षण से वंचित कर दिया। परन्तु विपरीत परिस्थितियों ने उसके गुण नष्ट नहीं किये और शीघ्र ही उसके जीवन में एक नया द्वार खोल दिया। उसके गुणों ने दिल्ली के तत्कालीन राजप्रतिनिधि कुतुबुद्दीन का ध्यान आकृष्ट किया, जिसने अधिक मूल्य पर खरीद लिया।
अपनी योग्यता के बल से इल्तुतमिश धीरे-धीरे अपना दर्जा बढ़ाता गया। वह बदायूँ का शासक बना दिया गया और कुतुबुद्दीन की एक कन्या से उसका विवाह हो गया। खोकरों के विरुद्ध मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय हुई, उसकी सेवाओं के उपलक्ष में सुल्तान के आदेश द्वारा वह दासत्व से मुक्त कर दिया गया और उसे अमीरुल-उमरा का ऊंचा पद मिला।
इस प्रकार दिल्ली के सरदारों ने एक योग्य व्यक्ति को चुना। परन्तु 1210 या 1211 ई. में सिंहासन पर बैठने के पश्चात् इल्तुतमिश ने अपने को संकट पूर्ण परिस्थिति में पाया। नासिरुद्दीन कुबाचा ने सिंध में स्वतंत्रता स्थापित कर ली और ऐसा प्रतीत होने लगा कि वह पंजाब पर भी अपना अधिपत्य जमाना चाहता है। ताजुद्दीन यल्दूज जो गजनी पर अधिकार किये था, अब भी मुहम्मद के भारतीय प्रदेशों पर प्रभुता का अपना पुराना दावा किये बैठा था।
कुतुबमीनार का निर्माण कार्य पूरा कराया। न्याय के लिए सिंहों के गले में घण्टी बंधवाई। नागौर में मस्जिद एवं विशाल अतरकिन का दरवाजा बनाया। दिल्ली में शम्सीहौज एवं नासिरुदीन महमूद का गढ़ी का मकबरा बनवाया जो भारत का पहला मकबरा माना जाता है। वकात-ए-नासिरी के लेखक मिनहाज इस काल का प्रमुख विद्वान था। प्रशासन में मदद के लिए तुर्कान-ए-चिहलगानी नामक दल का गठन किया। सल्तनत काल में वंशानुगत व्यवस्था चलाने का श्रेय एवं उत्तराधिकारी घोषित करने की परम्परा मिश ने चालू की। वास्तव में इस काल में उत्तराधिकार की कोई निश्चित परम्परा नही थी।
इल्तुतमिश अपने प्रिय पुत्र नसिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के पश्चात् अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी ग्वालियर अभियान से लौटने के बाद घोषित किया। नसिरुद्दीन महमूद की याद में उसने दिल्ली में पहला मकबरा जिसे गढ़ी का मकबरा कहा जाता है का निर्माण कराया। इसका अन्तिम अभियान वमियान का माना जाता है। इसी दौरान बीमार होने के पश्चात् मृत्यु हो गयी। राजगद्दी को वंशानुगत बनाने वालों में दिल्ली का पहला शासक मिश को माना जाता है।
अमीरों ने इल्तुतमिश की मृत्यु के पश्चात् रजिया को गद्दी पर न बैठकार उसके योग्य पुत्र रुकनुद्दीन फिरोज को गद्दी पर न बैठाया। यह एक कमजोर और अक्षम शासक था पूरा शासन इसकी विलासी महत्वाकांक्षा और क्रूर मां शाह तुर्कान के हाथों में था। यह कुचक्रणी थी। इतिहासकारों ने इसे दासी बताया है जो मिश के हरम में महत्वपूर्ण स्थान पाकर रुकनुद्दीन की मां बनी।
मंगोलों से बचाव :
मंगोल आक्रमणकारी चंगेज़ ख़ाँ के भय से भयभीत होकर ख्वारिज्म शाह का पुत्र 'जलालुद्दीन मुगबर्नी' वहां से भाग कर पंजाब की ओर आ गया। चंगेज़ ख़ाँ उसका पीछा करता हुए लगभग 1220-21 ई. में सिंध तक आ गया। उसने इल्तुतमिश को संदेश दिया कि वह मंगबर्नी की मदद न करें। यह संदेश लेकर चंगेज़ ख़ाँ का दूत इल्तुतमिश के दरबार में आया। इल्तुतमिश ने मंगोल जैसे शक्तिशाली आक्रमणकारी से बचने के लिए मंगबर्नी की कोई सहायता नहीं की।
मंगोल आक्रमण का भय 1228 ई. में मंगबर्नी के भारत से वापस जाने पर टल गया। कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद अली मर्दान ने बंगाल में अपने को स्वतन्त्र घोषित कर लिया तथा 'अलाउद्दीन' की उपाधि ग्रहण की। दो वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उसका पुत्र 'हिसामुद्दीन इवाज' उत्तराधिकारी बना। उसने 'ग़यासुद्दीन आजिम' की उपाधि ग्रहण की तथा अपने नाम के सिक्के चलाए और खुतबा (उपदेश या प्रशंसात्मक रचना) पढ़वाया।
विजय अभियान :
1225 में इल्तुतमिश ने बंगाल में स्वतन्त्र शासक 'हिसामुद्दीन इवाज' के विरुद्ध अभियान छेड़ा। इवाज ने बिना युद्ध के ही उसकी अधीनता में शासन करना स्वीकार कर लिया, पर इल्तुतमिश के पुनः दिल्ली लौटते ही उसने फिर से विद्रोह कर दिया। इस बार इल्तुतमिश के पुत्र नसीरूद्दीन महमूद ने 1226 ई. में लगभग उसे पराजित कर लखनौती पर अधिकार कर लिया। दो वर्ष के उपरान्त नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के बाद मलिक इख्तियारुद्दीन बल्का ख़लजी ने बंगाल की गद्दी पर अधिकार कर लिया।
1230 ई. में इल्तुतमिश ने इस विद्रोह को दबाया। संघर्ष में बल्का ख़लजी मारा गया और इस बार एक बार फिर बंगाल दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया। 1226 ई. में इल्तुतमिश ने रणथंभौर पर तथा 1227 ई. में परमरों की राजधानी मन्दौर पर अधिकार कर लिया। 1231 ई. में इल्तुतमिश ने ग्वालियर के क़िले पर घेरा डालकर वहाँ के शासक मंगलदेव को पराजित किया।
सिक्कों का प्रयोग :
इल्तुतमिश पहला तुर्क सुल्तान था, जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलवाये। उसने सल्तनत कालीन दो महत्त्वपूर्ण सिक्के 'चाँदी का टका' (लगभग 175 ग्रेन) तथा 'तांबे' का ‘जीतल’ चलवाया। इल्तुतमिश ने सिक्कों पर टकसाल के नाम अंकित करवाने की परम्परा को आरम्भ किया। सिक्कों पर इल्तुतमिश ने अपना उल्लेख ख़लीफ़ा के प्रतिनिधि के रूप में किया है। ग्वालियर विजय के बाद इल्तुतमिश ने अपने सिक्कों पर कुछ गौरवपूर्ण शब्दों को अंकित करवाया, जैसे “शक्तिशाली सुल्तान”, “साम्राज्य व धर्म का सूर्य”, “धर्मनिष्ठों के नायक के सहायक”। इल्तुतमिश ने ‘इक्ता व्यवस्था’ का प्रचलन किया और राजधानी को लाहौर से दिल्ली स्थानान्तरित किया।
निर्माण कार्य :
स्थापत्य कला के अन्तर्गत इल्तुतमिश ने कुतुबुद्दीन ऐबक के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। भारत में सम्भवतः पहला मक़बरा निर्मित करवाने का श्रेय भी इल्तुतमिश को दिया जाता है। इल्तुतमिश ने बदायूँ की जामा मस्जिद एवं नागौर में अतारकिन के दरवाज़ा का निर्माण करवाया। ‘अजमेर की मस्जिद’ का निर्माण इल्तुतमिश ने ही करवाया था। उसने दिल्ली में एक विद्यालय की स्थापना की। इल्तुतमिश का मक़बरा दिल्ली में स्थित है, जो एक कक्षीय मक़बरा है