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संजय गांधी जीवनी - Biography of Sanjay Gandhi in Hindi Jivani

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संजय गांधी भारत के एक राजनेता थे। वे भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के छोटे पुत्र थे। मेनका गांधी उनकी पत्नी हैं और वरुण गांधी उनके पुत्र। भारत में आपातकाल के समय उनकी भूमिका बहुत विवादास्पद रही। अल्पायु में ही एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा संजय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के छोटे बेटे के रूप में नई दिल्ली में पैदा हुआ था, 14 दिसंबर 1946 को। उनके बड़े भाई राजीव गांधी की तरह, संजय पहले Welham लड़कों 'स्कूल में पढ़ाई की और फिर देहरादून में दून स्कूल में। संजय कॉलेज कभी नहीं भाग लिया, लेकिन कैरियर [प्रशस्ति पत्र की जरूरत] के रूप में ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग लिया और तीन साल के लिए Crewe में रोल्स रॉयस के साथ एक प्रशिक्षु, इंग्लैंड कराना पड़ा। वह बहुत स्पोर्ट्स कारों में रुचि थी, और यह भी एक प्राप्त पायलट का लाइसेंस। वह राजनीति की एक एयरलाइन पायलट स्वतंत्र रूप में एक कैरियर का निर्माण किया गया है, जबकि संजय ने अपनी मां के करीब बने रहे।


आनी-बानी के समय संजय गांधी का किरदार:


1974 में विरोधी दल हड़ताल करने पर उतर आए थे और इस वजह से देश के बहुत से भागो में अशांति का वातावरण फ़ैल रहा था और इसका सर्वाधिक प्रभाव सरकार और देश की आर्थिक व्यवस्था पर गिरा।


25 जून 1975 को कोर्ट के खिलाफ जाकर इंदिरा ने आनी-बानी की स्थिति घोषित की, जिसके चलते देश के वार्षिक चुनावो में भी देरी हुई। उस समय आनी-बानी का विरोध करने वाले हजारो स्वतंत्रता सेनानियों जैसे जय प्रकाश नारायण और जिवंतराम कृपलानी को गिरफ्तार कर लिया गया था।


एकदम शत्रुमय और द्वेषी राजनीतिक वातावरण में आनी-बानी के थोड़े समय से पहले और बाद में, संजय गांधी, इंदिरा गांधी के विशेष सलाहकार के रूप में साबित हुए। अधिकारिक रूप से किसी भी नियुक्त पद पर ना होते हुए भी वे इंदिरा गांधी के माध्यम से बहुत से काम कर जाते थे। इंदिरा गांधी भी उस समय उन्हें अपना सबसे प्रभावशाली सलाहकार मानने लगी थी। मार्क टुल्ली के अनुसार, “उनका अनुभवी ना होना उन्हें अपनी माँ की ताकतों और अधिकारों का उपयोग करने से नही रोकता, इंदिरा गांधी ने भी उन्हें अपनी कैबिनेट में बिना पद के शामिल कर रखा था।”


उस समय स्थानिक लोगो में भी यह चर्चा थी की सरकार प्रधानमंत्री ऑफिस की बजाए केवल प्रधानमंत्री आवास से ही चलाई जा रही है। संजय गांधी ने ही पार्टी में हजारो युवा लोगो को शामिल कर रखा था, जिनमे से काफी लोग या तो उनके करीबी, संबंधी या दोस्त ही थे। जो लोग उस समय इंदिरा गांधी के निर्णय का विरोध करते थे संजय गांधी उन्हें पार्टी से निकाल देते थे।


एकमात्र जीवनी


अब तक संजय गांधी की एकमात्र जीवनी लिखी गई है जिसका नाम है –द संजय स्टोरी- और उसके लेखक हैं – वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता। यह जीवनी भी ना तो प्रामाणिक होने का दावा करती है और ना ही आधिकारिक। संजय गांधी की जीवनी में विनोद मेहता ने बेहद वस्तुनिष्ठता के साथ संजय गांधी के बहाने उस दौर को भी परिभाषित किया है। आपातकाल की ज्यादतियों के अलावा मारुति कार प्रोजेकट के घपलों पर तो विस्तार से लिखा है लेकिन साथ ही आपातकाल हटने पर सरकारी कामकाज में ढिलाई पर भी अपने चुटीले अंदाज में वार किया है। वो लिखते हैं- जिस दिन 21 मार्च को आपातकाल हटाई गई उस दिन राजधानी एक्सप्रेस चार घंटे की देरी से पहुंची। कानपुर में एल आई सी के कर्मचारियों ने लंच टाइम में मोर्चा निकाला, दिल्ली के प्रेस क्लब में मुक्केबाजी हुई, कलकत्ता में दो फैमिली प्लानिंग वैन जलाई गई, मुम्बई के शाम के अखबारों में डांस क्लासेस के विज्ञापन छपे, तस्करी कर लाई जाने वाली व्हिस्की की कीमत दस रुपए कम हो गई। देश में हालात सामान्य हो गए। व्यगंयात्मक शैली में ये कहते हुए विनोद आपातकाल के दौर में इन हालातों के ठीक होने की तस्दीक करते हैं।


विनोद मेहता की किताबों में कई तथ्य पुराने हैं- जैसे दून स्कूल में ही संजय को कमलनाथ जैसा दोस्त मिला जो लगातार दो साल तक फेल हो चुका था। स्कूल से वापस आने के बाद संजय गांधी की दोस्तों के साथ मस्ती काफ़ी बढ़ गई थी और विनोद मेहता ने बिल्कुल फिक्शन के अंदाज में उसको लिखा है जिसकी वजह से रोचकता अपने चरम पर पहुंच जाती है। संजय गांधी की इस किताब में जो सबसे दिलचस्प अध्याय है वो है मारुति कार के बारे में देखे गए संजय के सपने के बारे में।


मारुती लिमिटेड विवाद


1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कैबिनेट ने भारत के मध्यमवर्गीय लोगो के लिए People’s car नाम की एक सस्ती कार के निर्माण की योजना बनाई | जून 1971 में मारुति मोटर्स लिमिटेड को इस कार्य के लिए कम्पनीज एक्ट में लिया गया और संजय गांधी इसके Managing Director बने | संजय को इससे पहले किसी भी कम्पनी से कोई भी काम करने का अनुभव नही था जो इस तरह की विधा के जानकार हो उसके बावजूद उन्हें कार निर्माण का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया |


इंदिरा गांधी के इस फैसले से उनकी काफी आलोचना हुयी लेकिन 1971 में Bangladesh Liberation War और पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में जीत के कारण आलोचकों के मुह बंद हो गये | संजय गांधी के पुरे जीवनकाल में उस कम्पनी ने कोई वाहन निर्माण नही किया | शोपीस के रूप में एक बार जब टेस्ट मॉडल का डेमो दिखाया गया तो उसकी भी आलोचना हुयी | संजय गांधी ने वेस्ट जर्मनी के Volkswagen कम्पनी से सहयोग की बात की |


        आपातकाल के दौरान संजय (Sanjay Gandhi) राजनीति में सक्रिय हो गये और मारुती प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में पड़ गया | इसी कारण उनपर कुनबा-परस्ती और भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगे | अंत में 1977 में जनता पार्टी जब सत्ता में आयी थी मारुती लिमिटेड को बंद कर दिया गया | 1980 में संजय गांधी की मृत्यु के एक साल बाद केंद्र सरकार ने मारुति के लिए एक सक्रिय सहयोग कम्पनी की खोज की और जापानी कम्पनी सुजुकी के सहयोग के साथ मिलकर मारुती 800 का निर्माण हुआ जो जापान और पूर्वी एशियाई देशो में काफी सफल रही |

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