लेनिन का जन्म २२ अप्रैल १८७० को सिम्बर्स्क में हुआ था। अपनी राजनैतिक गतिविधियों के कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। हाँलांकि उन्होंने एक बाहरी विद्यार्थी के रूप विधि की डिग्री हासिल की। उसके बाद वे सेंट पीटर्सबर्ग़ चले गए और वहाँ पर क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होते रहे। उन्होंने कई उपनामों का इस्तेमान किया जिसमें अंततः १९०१ में वे लेनिन का प्रयोग करने पर स्थिर हो गए। उन्हें साइबेरिया में निर्वासन भुगतना पड़ा। १९०७ के बाद इनको रूस में रहना असुरक्षित लगने लगा और इस कारण वे पश्चिमी यूरोप चले गए। स्विट्ज़रलैंड में बसे लेनिन को जर्मन मदद इस आशा के साथ मिली कि वो रूसी सैन्य प्रयासों को कमज़ोर करने में मदद करेंगे। इस घटना की वजह से उन्हें अक्सर एक जर्मन जासूस की नज़र से भी देखा गया। १९१८ में उनपर दो आत्मघाती हमले हुए। १९२४ में उनकी मृत्यु हो गई। इसके तीन दिन बाद ही पेत्रोग्राद का नाम बदल कर लेनिन ग्राद कर दिया गया। प्रेत्रोग्राद को पहले (और अब) सेंट पीटर्सबर्ग़ कहते थे। 1891 में उसने पीट्सबर्ग विश्वविद्यालय से विधि-शास्त्र में उपाधि प्राप्त की और एक उग्रवादी दल का सदस्य बन गया । मार्क्सवादी विचारधारा के अनुरूप उसने मजदूरों के हितों के लिए क्रान्तिकारी संगठन बनाया । रूस के जार ने उसकी क्रान्तिकारी गतिविधियों को देखकर 1897 से 1900 तक उसे देश से निर्वासित कर दिया । उसे पकड़कर जेल में भी डाला गया था ।
उसे साइबेरिया भागना पड़ा । वहां से वह स्विटजरलैण्ड चला गया था । उसने अपने उग्रवादी विचारों को समाचार-पत्रों के माध्यम से जनता तक पहुंचाने का कार्य जारी रखा । लेनिन ने ”इस्क्रा” नामक समाचार-पत्र का सम्पादन किया, जिसके ओजपूर्ण विचार पढ़कर रूस की जनता का खून खौल उठता था । इस्क्रा के माध्यम से लेनिन ने क्रान्ति का बिगुल बजा दिया था ।
उस समय रूस में जार सम्राट निकोलस द्वितीय का निरंकुश शासन था । निरंकुश होने के साथ-साथ जार अयोग्य, रूढ़िवादी, कठोर, अदूरदर्शी, अत्याचारी था । उसकी पत्नी जर्मन थी । वह भी निरंकुश और रूढ़िवादी विचारधारा से प्रेरित थी । उसे रूसी जनता से किसी भी प्रकार का लगाव व सहानुभूति नहीं थी । वह उदारवादियों के दमन के लिए जार पर अनुचित दबाव डाला करती थी ।
1893 से उन्होंने रूस के साम्यवादी विचार धारा का प्रचार करना प्रारंभ किया था. लेनीन को कई बार जेल भेजा गया था तथा निर्वासित भी किया गया. ‘प्रलिटरि’ एवं ‘इस्क्रा’ के संपादन के अतिरिक्त 1898 में उन्होंने बोल्शेविक पार्टी की स्थापना की.
1905 की क्रांती के उसके प्रयास असफल रहे किन्तु 1917 में उन्होंने रूस के पुननिर्माण योजना बनाई और सफल हुए. उन्होंने केरेन्सकी की सरकार पलट दी और 7 नवम्बर, 1917 को लेनीन की अध्यक्षता में सोवियत सरकार की स्थापना हुई. रूस का भाग्यविधाता बनने के बाद के बाद लेनीन अपने देश को विकसीत करने का प्रयत्न किया था कड़े अनुशासन के साथ देश पर नियंत्रण रखा.
लेनीन रूस के इतिहास में ही नहीं विश्व इतिहास के कर्णधारों में एक अग्रणी नाम है. उन्होंने रूस की काया पलट कर के सारे विश्व को ही आश्चर्य चकित कर दिया. उन्ही के प्रयत्नों से रूस में समाजवाद की स्थापना हुई थी. मार्क्स के स्वप्न को साकार करने का श्रेय भी लेनीन को ही जाता है.
21 जनवरी, 1924 को इस क्रांतिकारी व्यवस्थापक की मृत्यु हो गई. 1991 में सोवियत सरकार के गिरने के बाद उनके सिद्धांतों व आदर्शों को यद्यपि नये सरकार ने अस्वीकार कर दिया, लेकिन अभी भी वहा और अन्य देशो में उनके प्रशंसकों की कामी नहीं है, अभी भी वे सामाजिक क्रांती के प्रेरक है. मास्को के रेड स्व्केयर में रखा उनका पार्थिक शरीर आज भी विश्व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.
सन् 1900 में निर्वासन से वापस आने पर एक समाचारपत्र स्थापित करने के उद्देश्य से उसने कई नगरों की यात्रा की। ग्रीष्म ऋतु में वह रूस के बाहर चला गया और वहीं से उसने "इस्क्रा" (चिनगारी) नामक समाचारपत्र का संपादन आरंभ किया। इसमें उसके साथ ""श्रमिकों की मुक्ति"" के लिए प्रयत्न करनेवाले वे रूसी मार्क्सवादी भी थे जिन्हें ज़ारशाही के अत्याचारों से उत्पीड़ित होकर देश के बाहर रहना पड़ रहा था। 1902 में उसने "हमें क्या करना है" शीर्षक पुस्तक तैयार की जिसमें इस बात पर जोर दिया कि क्रांति का नेतृत्व ऐसे अनुशासित दल के हाथ में होना चाहिए जिसका मुख्य कामकाज ही क्रांति के लिए उद्योग करना है। सन् 1903 में रूसी श्रमिकों के समाजवादी लोकतंत्र दल का दूसरा सम्मेलन हुआ। इसमें लेनिन तथा उसके समर्थकों को अवसरवादी तत्वों से कड़ा लोहा लेना पड़ा। अंत में क्रांतिकारी योजना के प्रस्ताव बहुमत से मंजूर हो गया और रूसी समाजवादी लोकतंत्र दल दो शाखाओं में विभक्त हो गया - क्रांति का वास्तविक समर्थक बोलशेविक समूह और अवसरवादी मेंशेविकों का गिरोह।
सन् 1905-07 में उसने रूस की प्रथम क्राति के समय जनसाधारण को उभाड़ने और लक्ष्य की ओर अग्रसर करने में बोलशेविकों के कार्य का निदेशन किया। अवसर मिलते ही नवंबर, 1905 में वह रूस लौट आया। सशस्त्र विद्रोह की तैयारी कराने तथा केंद्रीय समिति की गतिविधि का संचालन करने में उसने पूरी शक्ति से हाथ बँटाया और करखानों तथा मिलों में काम करनेवाले श्रमिकों की सभाओं में अनेक बार भाषण किया।
लेनिन ने उन सभी के खिलाफ़ कठोर विचारधारात्मक संघर्ष किया, जो पार्टी को समान विचार वाले सदस्यों की ढुलमुल संस्था के रूप में बनाना चाहते थे। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पूंजीपति वर्ग को हराने के लिए मजदूर वर्ग के अंदर जिस अटूट एकता की जरूरत है, उसे हासिल करने के लिए यह काफी नहीं है कि पार्टी के सदस्य पार्टी के कार्यक्रम से सहमत हों और नियमित तौर पर योगदान दें; पार्टी के सदस्यों को पार्टी के किसी संगठन के अनुशासन तले काम भी करना होगा। उन्होंने लोकतांत्रिक केन्द्रीयवाद - सामूहिक फैसले लेना और व्यक्तिगत दायित्व निभाना - को कम्युनिस्ट पार्टी के संगठनात्मक सिद्धांत बतौर स्थापित किया, जिसके ज़रिये अधिक से अधिक व्यक्तिगत पहल उभरकर आती है और साथ ही साथ, पार्टी की एकाश्म एकता हमेशा बनी रहती है तथा मजबूत होती रहती है।
विभिन्न ताकतों द्वारा मार्क्सवाद को तोड़-मरोड़कर और झूठे तरीके से पेश करने की कोशिशों के खिलाफ़ लेनिन ने मार्क्सवाद के मूल सिद्धांतों का अनुमोदन और हिफ़ाज़त करने के लिए जो कठोर संघर्ष किया था, वह उस अवधि में उनके द्वारा लिखे गये महत्वपूर्ण लेखों में स्पष्ट होता है। अपनी कृति “राज्य और क्रांति” में लेनिन ने मार्क्सवाद और एंगेल्स की उस मूल अभिधारणा की हिफ़ाज़त की कि श्रमजीवी वर्ग के लिए यह जरूरी है कि पूंजीवादी राज्य तंत्र को चकनाचूर कर दिया जाये और उसकी जगह पर एक बिल्कुल नया राज्यतंत्र स्थापित किया जाये जो मजदूर वर्ग की सेवा में काम करेगा। अपनी कृति “श्रमजीवी क्रांति और विश्वासघातक काउत्स्की” में लेनिन ने पूंजीवादी लोकतंत्र के बारे में मजदूर वर्ग आंदोलन में भ्रम फैलाने की कोशिशों का पर्दाफाश किया और श्रमजीवी अधिनायकत्व के तहत श्रमजीवी लोकतंत्र के साथ पूंजीवादी लोकतंत्र की बड़ी तीक्ष्णता से तुलना की।