सुशील कुमार शिंदे (जन्म: 4 सितम्बर 1941) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबंद्ध एक भारतीय राजनीतिज्ञ है। पूर्व में भारत गणराज्य के केन्द्रीय गृह मंत्री थे तथा पंद्रहवीँ लोकसभा के महाराष्ट्र से सांसद है। वे पूर्व में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और आन्ध्र प्रदेश के राज्यपालरह चुके है।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में केन्द्रीय बिजली मंत्री भी रह चुके है।
इस पदोन्नति के साथ सुशील कुमार शिंदे सरकार के सबसे महत्वपूर्ण और ताक़तवर मंत्रियों में से एक हो गए हैं. यह भी संयोग है कि उनको सब-इंस्पेक्टर के पद से इस्तीफ़ा दिलवाकर 1971 में राजनीति में लाने वाले शरद पवार केंद्र में मंत्री तो हैं लेकिन उनका कृषि मंत्री का ओहदा उतना ताक़तवर नहीं है.
महाराष्ट्र के सोलापुर में वर्ष 1941 में एक दलित परिवार में जन्में शिंदे के पास आर्ट्स की ऑनर्स डिग्री और कॉनून की डिग्री है. वर्ष 1965 तक वे सोलापुर की अदालत में वकालत करते रहे फिर पुलिस में भर्ती हो गए. पाँच साल तक पुलिस की नौकरी करने के बाद राजनीति में आ गए. पाँच बार महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य चुने गए और राज्यमंत्री से लेकर वित्तमंत्री और मुख्यमंत्री तक हर पद पर रहे. एक बार महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. वर्ष 1992 में उन्हें पार्टी ने राज्यसभा में भेजने का निर्णय लिया. यहाँ उन्हें सोनिया गांधी के नज़दीक जाने का मौक़ा मिला और इसी की वजह से 1999 में उन्हें अमेठी में सोनिया गांधी का प्रचार संभालने का मौक़ा मिला. 1999 में वे लोकसभा के लिए चुने गए फिर सोनिया गांधी के निर्देश पर वर्ष 2002 में उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार भैरोसिंह शेखावत के ख़िलाफ़ उपराष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और हार गए. जब केंद्र में 2004 में जब यूपीए की सरकार आई तो उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाकर भेजा गया लेकिन एक साल बीतते बीतते उन्होंने यह पद भी छोड़ दिया.
व्यवसाय
शिंदे ने सोलापुर सत्र अदालत में एक बेलीफ के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, जहां उन्होंने 1 9 57 से 1 9 65 तक सेवा की। बाद में, वह एक राज्य पुलिस के रूप में एक कॉन्स्टेबल में शामिल हो गए, और सीआईडी के तहत छह साल के लिए महाराष्ट्र पुलिस सीआईडी के पुलिस निरीक्षक के तौर पर काम किया। गुरु अमुरुराज पाटील
राजनीति
शिंदे कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं। उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 1 9 78, 1 9 80, 1 9 85 और 1 99 0 में जीता। शिंदे जुलाई 1992 से मार्च 1 99 8 के दौरान महाराष्ट्र से राज्यसभा के लिए चुने गए। 2002 में, शिंदे भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हार गए। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन उम्मीदवार भैरों सिंह शेखावत उन्होंने 2003 से 2004 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, इससे पहले 30 अक्टूबर 2004 को आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के पद पर नियुक्त किए गए सुरजीत सिंह बरनाल, जो तमिलनाडु के गवर्नर बने थे, की जगह थी। उन्होंने 29 जनवरी 2006 को कार्यालय छोड़ा।
20 मार्च 2006 को शिंदे को राज्यसभा से दूसरे बार राज्यसभा के रूप में निर्वाचित किया गया। उनके पूर्ववर्ती प्रणव मुखर्जी को भारत के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद शिंदे लोकसभा में सत्ताधारी पार्टी के नेता बने। शिंदे 2006 से 2012 तक भारत के ऊर्जा मंत्री थे। बाद में, उन्हें 2012 में भारत के गृह मंत्री नियुक्त किया गया।
2014 लोकसभा चुनाव में, शिंदे कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार थे। भाजपा उम्मीदवार श्री शरद बनसोड ने उन्हें हराया था।
शिंदे का राजनीतिक सफर
शिंदे कांग्रेस के लो-प्रोफ़ाइल नेता माने जाते हैं। महाराष्ट्र के शोलापुर में वर्ष 1941 में एक दलित परिवार में जन्में शिंदे के पास आर्ट्स की ऑनर्स डिग्री और कानून की डिग्री है।
इन्होंने वर्ष 1965 तक वे शोलापुर की अदालत में वकालत करते रहे फिर पुलिस में भर्ती हो गए। पाँच साल तक पुलिस की नौकरी करने के बाद राजनीति में आ गए।
ये पाँच बार महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य चुने गए और राज्यमंत्री से लेकर वित्तमंत्री और मुख्यमंत्री तक हर पद पर रहे। एक बार महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 1992 में उन्हें पार्टी ने राज्यसभा में भेजने का निर्णय लिया। यहाँ उन्हें सोनिया गांधी के नज़दीक जाने का मौक़ा मिला और इसी की वजह से 1999 में उन्हें अमेठी में सोनिया गांधी का प्रचार संभालने का मौक़ा मिला।
1999 में ये लोकसभा के लिए चुने गए फिर सोनिया गांधी के निर्देश पर वर्ष 2002 में उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार भैरोसिंह शेखावत के ख़िलाफ़ उपराष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और हार गए। जब केंद्र में 2004 में जब यूपीए की सरकार आई तो उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाकर भेजा गया लेकिन एक साल बीतते बीतते उन्होंने यह पद भी छोड़ दिया।
वर्ष 2006 में यह एक बार फिर राज्यसभा के सदस्य बने और फिर ऊर्जा मंत्री 2009 में चुनाव में दूसरी बार ऊर्जा मंत्री बनाए गए और 31 जुलाई, 2012 को गृहमंत्री बनाए गए।
गृहमंत्री के रूप में उनके सामने ढेर सारी चुनौतियाँ होंगी लेकिन ऊर्जा मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल को बिना किसी उपलब्धि के कार्यकाल के रुप में याद किया जाएगा, जो ऐसे समय में ख़त्म हुआ जब मंत्रालय अपने इतिहास की सबसे बड़ी चुनौती से जूझ रहा था।