हिंदी लेखक व साहित्यकार विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून 1912 को मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ।आपने कहानी, उपन्यास, नाटक व निबंध विधाओं में सृजन किया। आपने ढलती रात, स्वप्नमयी, अर्धनारीश्वर, धरती अब भी घूम रही है, क्षमादान, दो मित्र, पाप का घड़ा, होरी इत्यादि उपन्यास लिखे। हत्या के बाद, नव प्रभात, डॉक्टर, प्रकाश और परछाइयाँ, बारह एकांकी, अशोक, अब और नही, टूट्ते परिवेश इत्यादि नाटकों का सृजन किया व संघर्ष के बाद, धरती अब भी धूम रही है, मेरा वतन, खिलोने, आदि और अन्त आपके सुप्रसिद्ध कहानी-संग्रह हैं। आपकी आत्म-कथा, 'पंखहीन' तीन खंडों में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। विष्णु प्रभाकर की जीवनी, 'आवारा मसीहा' चर्चित रही। आपने यात्रा वृतांत भी लिखे जिनमें ज्योतिपुन्ज हिमालय, जमुना गन्गा के नैहर मै सम्मिलित हैं। 11 अप्रैल 2009 को देहली में आपका देहांत हो गया।
विष्णु प्रभाकर का जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गांव मीरापुर में हुआ था। उनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे और उनकी माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी करनी पड़ी। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के तौर पर काम करते समय उन्हें प्रतिमाह १८ रुपये मिलते थे, लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिन्दी में प्रभाकर व हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही। विष्णु प्रभाकर ने पहला नाटक लिखा- हत्या के बाद, हिसार में नाटक मंडली में भी काम किया और बाद के दिनों में लेखन को ही अपनी जीविका बना लिया। आजादी के बाद वे नई दिल्ली आ गये और सितम्बर १९५५ में आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक के तौर पर नियुक्त हो गये जहाँ उन्होंने १९५७ तक काम किया।
लेखन कार्य
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गाँधी जी के जीवन आदर्शों से प्रेम के कारण प्रभाकर जी का रुझान कांग्रेस की तरफ़ हो गया। वे आज़ादी के दौर में बजते राजनीतिक बिगुल में उनकी लेखनी का भी एक उद्देश्य बन गया था, जो आज़ादी के लिए संघर्षरत थी। अपने लेखन के दौर में वे प्रेमचंद, यशपाल और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री भी रहे, किन्तु रचना के क्षेत्र में उनकी अपनी एक अलग पहचान बन चुकी थी। 1931 में 'हिन्दी मिलाप' में पहली कहानी दीवाली के दिन छपने के साथ ही उनके लेखन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह जीवनपर्यंत निरंतर चलता रहा। नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने से वे शरतचन्द्र की जीवनी 'आवारा मसीहा' लिखने के लिए प्रेरित हुए, जिसके लिए वे शरतचन्द्र को जानने के लिये लगभग सभी स्रोतों और जगहों तक गए। उन्होंने बांग्ला भाषा भी सीखी और जब यह जीवनी छपी, तो साहित्य में विष्णु जी की धूम मच गयी।
प्रथम नाटक रचना
विष्णु प्रभाकर जी ने अपना पहला नाटक 'हत्या के बाद' लिखा और हिसार में एक नाटक मंडली के साथ भी कार्यरत हो गये। इसके पश्चात् प्रभाकर जी ने लेखन को ही अपनी जीविका बना लिया। आज़ादी के बाद वे नई दिल्ली आ गये और सितम्बर 1955 में आकाशवाणी में नाट्यनिर्देशक नियुक्त हो गये, जहाँ उन्होंने 1957 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं। इसके बाद वे तब सुर्खियों में आए, जब राष्ट्रपति भवन में दुर्व्यवहार के विरोधस्वरूप उन्होंने 'पद्मभूषण' की उपाधि वापस करने घोषणा कर दी। विष्णु प्रभाकर जी आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के विविध क्षेत्रों में पर्याप्त लोकप्रिय रहे। देश-विदेश की अनेक यात्राएँ करने वाले विष्णुजी जीवनपर्यंत पूर्णकालिक मसिजीवी रचनाकार के रूप में साहित्य की साधना में लिप्त रहे थे।
प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास- ढलती रात, स्वप्नमयी, अर्धनारीश्वर, धरती अब भी घूम रही है, क्षमादान, दो मित्र, पाप का घड़ा, होरी,
नाटक- हत्या के बाद, नव प्रभात, डॉक्टर, प्रकाश और परछाइयाँ, बारह एकांकी, अशोक, अब और नही, टूट्ते परिवेश,
कहानी संग्रह- संघर्ष के बाद, धरती अब भी धूम रही है, मेरा वतन, खिलोने, आदि और अन्त्,
आत्मकथा- पंखहीन नाम से उनकी आत्मकथा तीन भागों में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है।
जीवनी- आवारा मसीहा,
यात्रा वृतान्त्- ज्योतिपुन्ज हिमालय, जमुना गन्गा के नैहर मै।
सम्मान
पद्म भूषण, अर्धनारीश्वर उपन्यास के लिये भारतीय ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी सम्मान तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरु अवॉर्ड इत्यादि
निधन
भारत के प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकारों में से एक विष्णु प्रभाकर जी का निधन 96 वर्ष की उम्र में 11 अप्रैल, 2009 को नई दिल्ली में हो गया।हिन्दी साहित्य के इस अमूल्य मोती के चले जाने से साहित्य के एक अद्भुत सूरज का अंत हो गया।